कहते हैं कि अगर इंसान के अंदर काबिलियत है, तो बस उसे एक मौके की दरकार है, फिर वो अपने हुनर को दिखाएगा और दुनिया कहने को मजबूर हो जाएगी वाह… फिल्म ‘दरिया दिल’ के ‘धनीराम’, ‘हम हैं कमाल’ के ‘पीताम्बर’, ‘आंखें’ के ‘हंसमुख राय’, ‘दूल्हे राजा’ के ‘केके सिंघानिया’ सहित 300 फिल्मों में अलग-अलग किरदार में नजर आए एक्टिंग के महारथी, कॉमेडी में माहिर और कलम के भी उतने ही दमदार कादर खान के लिए बॉलीवुड का सफर आसान नहीं था. बचपन इतनी ज्यादा गरीबी में बीता कि हफ्ते में तीन दिन भूखे रहकर ही गुजारा करना पड़ता था और तो और मस्जिद के बाहर भीख भी मांगनी पड़ती थी.
कादर खान की उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी की पूरी कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. ‘जिंदगी तो खुदा की रहमत है, जो नहीं समझा उसकी जिंदगी पर लानत है.’ ये डायलॉग उन्हीं का लिखा हुआ है, जो उनकी जिंदगी पर फिट बैठता है. उन्होंने खुदा की रहमत को समझा और मेहनत से अपनी जिंदगी को फर्श से अर्श पर लेकर गए.
कादर खान के लिए जब मजबूरी में आए मुंबई
कादर खान के पिता अब्दुल रहमान, अफगानिस्तानी थे और मां इकबाल बेगम, ब्रिटिश इंडिया से थीं. उनके बड़े भाई भी थे, लेकिन वो अल्लाह को प्यारे हो गए. कादर के जन्म के बाद उनकी मां बहुत घबराई हुई थीं कि कहीं उनकी तीन संतानों की तरह बेटा कादर भी दुनिया को अलविदा न कह दे, इसी वजह से उका पूरा परिवार अफगानिस्तान छोड़ भारत में आ गया और मुंबई की एक बस्ती में बस गया.
तलाक के बाद मां के साथ रहे
अम्मी-अब्बू के आए दिन झगड़ों को देखकर कादर खान बड़े हो रहे थे कि अचानक दोनों का तलाक हो गया. तलाक के बाद वह अपनी मां के साथ अपनी नानी के घर चले गए और कुछ समय बाद ननिहाल वालों ने उनकी मां की जबरदस्ती दूसरी शादी करा दी. दरअसल, उस वक्त में अकेला बच्चे को पाल पाना और औरत का अकेला रहना समाज में अच्छा नहीं माना जाता था.
गरीबी के कारण भूखे रहकर गुजारी रातें
कादर खान को सौतेले पिता तो मिल गए, लेकिन प्यार नसीब नहीं हुआ और न ही गरीबी के दिन बदले. खाने को दो वक्त की रोटी नहीं हुआ करती थी और न ही कमाई का कोई साधन. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यही कारण था कि कादर के सौतेले पिता उन्हें 10 किलोमीटर उनके पहले पिता के पास 2 रुपए मांगने के लिए भेजते थे. इतना ही नहीं साथ ही में वो मस्जिद में जाकर भीख भी मांगते थे. इतना करने के बाद भी परिवार का गुजारा नहीं हो पाता था. आलम ये था कि कादर के पूरे परिवार को हफ्ते में 3 दिन भूखे सोना पड़ता था.
जब गरीबी के चलते छोड़ दी थी पढ़ाई
कादर खान को घर की गरीबी परेशान करती थी. लेकिन उनकी मां चाहती थीं कि बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बन जाए. छोटी उम्र में कादर खान ने झुग्गी के अन्य बच्चों की तरह स्कूल छोड़ने और स्थानीय मिल में काम खोजने का फैसला किया. उसने खुलासा किया था कि जब उसकी मां ने उसे शिक्षा के लिए एक मदरसे में भेजा, तो वह मस्जिद के पास के कब्रिस्तान में छिप जाते थे और दो कब्रों के बीच बैठ खुद से बातें करते हुए फिल्मी डायालॅग्स बोलते थे
मां की सीख ने किया पढ़ने को मजबूर
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उनकी मां ने उन्हें काम करने के बजाय पढ़ाई के लिए मजबूर किया. उन्हें याद करते हुए कहा था, ‘मेरी मां ने कहा था ‘यदि आप आज दैनिक मजदूर बन जाते हो, तो 3 रुपये हर दिन के ही मिलेगा. लेकिन ये बाद जहन में याद रखना कि अगर इस गरीबी से छुटकारा पाना चाहते हो तो पहले तुमको खुद को शिक्षित करना होगा’. अपनी मां की सलाह के बाद, उन्होंने स्कूल में दाखिला लिया और बाद में उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध इस्माइल यूसुफ कॉलेज से स्नातक किया. यहां तक कि उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया.
कब्रिस्तान में मिला ‘फरिश्ता’
बचपन से ही कादर खान को नकल करने की आदत थी. जब वह कब्रिस्तान में जाकर दो कब्रों के बीच बैठ खुद से बातें करते हुए फिल्मी डायालॅग्स बोलते थे तब वहीं एक शख्स दीवार की आड़ में खड़े होकर उनको देखता था. वो शख्स थे अशरफ खान. अशरफ उस समय अपने एक स्टेज ड्रामा के लिए 8 साल के लड़के की तलाश में थे. उन्होंने कादर को नाटक में काम दे दिया और यहीं से कादर खान की किस्मत बदल गई. पढ़ाई के साथ ही कादर खान थिएटर से भी जुड़े रहे.
दिलीप साहब के सामने जब कादर खान ने रखी थी दो शर्तें
कॉलेज के दिनों उमें नका एक ड्रामा ‘ताश के पत्ते’ बहुत फेमस हुआ था. दूर-दूर से लोग उनके इस ड्रामे को देखने के लिए आया करते थे. इसी दौरान एक दिन कादर कॉलेज में पढ़ा रहे थे, तभी उनके पास अचानक दिलीप कुमार का फोन आया. फोन उठाया तो उधर से आवाज आई, ‘मैं दिलीप कुमार बोल रहा हूं और मैं भी आप के ड्रामे ताश के पत्ते को देखना चाहता हूं.’
दिलीप कुमार का नाम सुनते ही वह सन्न रह गए. कुछ समय बाद कादर ने दिलीप साहब को जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘आप बेशक आ कर ड्रामा दे सकते हैं, पर इसके लिए मेरी कुछ शर्त है.’ उन्होंने कहा, ‘आपको ठीक समय पर ड्रामा देखने के लिए आना होगा, क्योंकि गेट बंद होने के बाद वो दोबारा नहीं खोला जाता और दूसरा ये कि आपको पूरा ड्रामा बैठ कर देखना होगा.’ कादर की इन दोनों शर्तों को उन्होंने मान लिया और ड्रामा देखने पहुंच गए.
दिलीप साहब ने दिया था दो फिल्मों में काम
कादर खान के काम से दिलीप साहब काफी प्रभावित हुए. शो खत्म होते ही उन्होंने स्टेज पर इस बात की अनाउंसमेंट कर दिया कि वो फिल्मों में कादर खान को काम देंगे. इसके बाद दिलीप ने कादर को दो फिल्मों में साइन किया था.